टुडे गुजराती न्यूज (ऑनलाइन डेस्क)
राहुल गांधी और केंद्रीय नेतृत्व की पसंद सुखविंदर सिंह सुक्खू पर भले कांग्रेस ने सहमति का ऐलान करने के बाद चुनाव के बाद दूसरी बाधा जरूर पार कर ली। लेकिन अब असली बाधा शुरू होती है। यह है आपसी गुटबाजी की चुनौती। पिछले कुछ सालों में पार्टी के पतन के पीछे गुटबाजी बहुत बड़ा कारण बनी है। सुक्खू और कांग्रेस को अब प्रदेश में सत्ता बनाए रखनी है। 2024 आम चुनाव में बीजेपी को मुकाबला देने और 2027 में रिवाज बदलने की कोशिश करनी है तो पार्टी को अभी से इसपर काम करना होगा। राज्य की चार लोकसभा सीटों पर पिछले दो आम चुनाव से कांग्रेस ने एकबार भी जीत हासिल नहीं की है।हालांकि, पिछले साल मंडी से लोकसभा उपचुनाव में प्रतिभा सिंह ने जरूर जीत हासिल की। अगर गुटबाजी देखें तो कांग्रेस इस कारण 2018 में चुनाव जीतने के बाद भी कमलनाथ-ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच हुए मतभेद के कारण मध्य प्रदेश में सत्ता गंवा चुकी है। सिंधिया बीजेपी में जा चुके हैं और अब केंद्रीय मंत्री है। राजस्थान में सीएम अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच 2018 में सत्ता आने के बाद अब तक पूरे चार साल तक विवाद के कारण पार्टी-सरकार के कामकाज पर असर पड़ा। चार साल बाद भी आज भी पार्टी इस विवाद का कोई हल नहीं निकाल सकी है। यही कारण है कि राज्य में पार्टी संघर्ष करती दिख रही है।
उसी तरह 2018 में सत्ता आने के बाद छत्तीसगढ़ में भी भूपेश बघेल-टी एस. सिंहदेव के बीच भी गुटबाजी की बात केंद्रीय नेतृत्व के सामने आती रही है। हालांकि, पिछले कुछ महीनों से वहां चीजें नियंत्रित करने का दावा किया गया। उसी तरह कर्नाटक में जहां कांग्रेस अगले साल सरकार मे आने का दावा कर रही है, वहां भी अभी से गुटबाजी सामने आ रही है। मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवारी को लेकर डी. के. शिवकुमार और सिद्दारमैया के बीच अभी से तकरार हो रही है।
पंजाब में इसी गुटबाजी के कारण पार्टी इस साल के शुरुआत में बड़ा सियासी नुकसान झेल चुकी है। वहां भी मसला कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिंद्धू के बीच सीएम पद को लेकर ही था। ऐसे में सुक्खू के सामने असली चुनौती शुरू होगी गुटबाजी का कांटो भरा ताज संभालने के बाद। साथ ही केंद्रीय नेतृत्व के सामने भी यह चुनौती होगी कि वह आने वाले समय में इस गुटबाजी और अलग-अलग खेमों के बीच सत्ता और ताकत का संतुलन किस तरह साधती है।