पाकिस्तान को FATF की ग्रे लिस्ट से बाहर कर दिया गया है. FATF दुनिया में आतंकवाद की आर्थिक रसद पर नकेल कसने वाली सर्वोच्च संस्था है. साल 2018 में पाकिस्तान को इस लिस्ट में डाला गया था और चार साल बाद बड़ी राहत देते हुए लिस्ट से बाहर कर दिया गया है. ऐसे में कई लोगों के मन में यह सवाल आ रहा है कि आखिर FATF क्या है, ‘ग्रे लिस्ट’ और ‘ब्लैक लिस्ट’ क्या होती है. आपको इन सभी सवालों के जवाब यहां आसाना भाषा में मिलेंगे. चलिए पहले ये जान लेते हैं कि FATF क्या है?
FATF एक अंतर-सरकारी निकाय है जिसकी स्थापना 1989 में मनी लॉन्ड्रिंग, आतंकी वित्तपोषण और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली की अखंडता के लिए अन्य संबंधित खतरों से निपटने के लिए की गई थी. वर्तमान में इसके 39 सदस्य हैं, जिनमें दो क्षेत्रीय संगठन – यूरोपीय आयोग और खाड़ी सहयोग परिषद शामिल हैं. भारत FATF कंसल्टेंट्स और उसके एशिया पैसिफिक ग्रुप का सदस्य है.
FATF की ग्रे लिस्ट में कौन से देश हैं?
जून 2022 तक, FATF की निगरानी सूची में 23 देश थे- अल्बानिया, बारबाडोस, बुर्किना फासो, कंबोडिया, केमैन आइलैंड्स, जिब्राल्टर, हैती, जमैका, जॉर्डन, माली, मोरक्को, म्यांमार, निकारागुआ, पाकिस्तान, पनामा, फिलीपींस, सेनेगल , दक्षिण सूडान, सीरिया, तुर्की, युगांडा, संयुक्त, अरब अमीरात और यमन. इसमें से अब पाकिस्तान को सूची से हटा दिया गया है.
क्या होती है ग्रे लिस्ट?
ग्रे लिस्टिंग का मतलब है कि FATF ने मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवाद के वित्तपोषण के खिलाफ उपायों पर अपनी प्रगति की जांच करने के लिए एक देश को निगरानी में रखा है. मार्च 2022 तक, FATF की बढ़ी हुई निगरानी सूची में 23 देश थे, जिन्हें आधिकारिक तौर पर “रणनीतिक कमियों वाले क्षेत्राधिकार” के रूप में जाना जाता है.
क्या होती है ब्लैक लिस्ट, कौन से देश हैं शामिल ?
FATF ब्लैकलिस्ट उन देशों की पहचान करता है जिन्हें मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवाद विरोधी शासन के लिए अपर्याप्त माना जाता है. FATF उच्च जोखिम के रूप में पहचाने जाने वाले सभी देशों के सभी सदस्यों को बुलाता है और न्यायालयों को उचित देखभाल करने के लिए प्रोत्साहित करता है. एक ब्लैक लिस्टेड देश FATF के सदस्य की ओर से आर्थिक प्रतिबंधों के अधीन हो सकता है. उदाहरण के तौर पर कोरिया और ईरान FATF ब्लैकलिस्ट में शामिल देश हैं.
ग्रे-लिस्टिंग का किसी देश पर क्या प्रभाव पड़ता है?
चलिए अब ये समझने की कोशिश करते हैं कि अगर किसी देश को FATF की ग्रे लिस्ट में डाल दिया जाता है तो उससे उस देश पर क्या प्रभाव पड़ता है. यहां ये स्पष्ट कर दें कि किसी देश को ग्रे लिस्ट में जोड़े जाने का मतलब कोई आर्थिक प्रतिबंध नहीं है बल्कि यह वैश्विक वित्तीय और बैंकिंग प्रणाली को संकेत देता है कि देश के साथ लेन-देन में जोखिम में वृद्धि हुई है. इसी के साथ उस देश को IMF और विश्व बैंक जैसे संगठनों से लेन-देन में काफी समस्या आती है. उस देश को लोन लेने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. ज्यादातर संस्थाएं कर्ज देने में आनाकानी करती हैं. ट्रेड में भी दिक्कत होती है.
ब्लैक लिस्ट से क्या प्रभाव पड़ता है?
FATF की ग्रे लिस्ट और ब्लैक लिस्ट में खासा अंतर है. ग्रे लिस्ट में शामिल देश FATF के साथ मिलकर काम करने को इच्छुक होते हैं. ब्लैक लिस्ट में वो देश होते हैं जो यह साबित करने की कोशिश नहीं करते हैं कि उन पर टेरर फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप बेबुनियाद हैं. आसान भाषा में कहा जाए तो ऐसे देश टेरर फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग को समर्थन देते हैं. ब्लैक लिस्ट में शामिल होने पर उस देश को IMF, ADB, वर्ल्ड बैंक या कोई भी फाइनेंशियल बॉडी आर्थिक मदद नहीं देती. उस देश से मल्टी नेशनल कंपनियां कारोबार समेट लेती है और अर्थव्यवस्था तबाही की कगार पर पहुंच जाती है.