टुडे गुजराती न्यूज (ऑनलाइन डेस्क)
गुजरात के चुनावी रण में एक लड़ाई ड्रैगन फ्रूट बनाम कमलम की भी चल रही है. राज्य के कच्छ इलाके में बड़े पैमाने पर किसान ड्रैगन फ्रूट की खेती करते हैं. साल 2012 तक यह फल भारत में चीन और वियतनाम से आयात होते थे. आज इन्हे निर्यात किया जाता है. इनकी बनावट की वजह से सरकार ने इनका नाम कमलम रख दिया, जो कांग्रेस को नागवार गुजर रहा है.
जिस तरह से भारत में आकर पोटैटो आलू या फिर बटाटा हो गया, अनियन कांदा या प्याज हो गया. इसी तरह से चीन में और वियतनाम में मिलने वाला ये फल कमलम हो गया है. ड्रैगन फ्रूट का नाम बदलकर गुजरात सरकार ने कमलम कर दिया है. आप कच्छ इलाके में कहीं भी जाएंगे तो कमलम के खेत मिल जाएंगे. यहां एक तरफ दूर-दूर तक फैले नमक के रेगिस्तान दिखाई देते हैं तो दूसरी तरफ फल और सब्जियों के खेत दिखते हैं.
ड्रैगन फ्रूट की बढ़ती खेती
कच्छ के किसानो ने पिछले कुछ सालों में ड्रैगन फ्रूट उगाना शुरू किया है, जिससे उनकी आमदनी में बढ़ोतरी हुई है. साल 2012 के पहले तक ड्रैगन फ्रूट को चीन, वियतनाम और दक्षिण एशिया के अन्य देशों से आयात किया जाता था, लेकिन अब कच्छ में उगाए गये ड्रैगन फ्रूट देश भर में भेजे जाने के साथ ही निर्यात भी किया जाता है.
किसान हरेश ठक्कर उन किसानों में से हैं, जिन्होंने सबसे पहले कच्छ में ड्रैगन फ़्रूट की खेती शुरू की. उन्होंने बताया कि वो वियतनाम से इसकी खेती करना सीखकरआए थे. साथ ही उन्होंने बताया कि एक पेड़ से एक मौसम में 30 से 35 किलो फल मिलते हैं. जून से नवंबर महीने तक फल आते हैं. वो केमिकल कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं करते. इस फल का आकार और रंग कमल के फूल से मिलता है. इसलिए कुछ किसानो ने इसका नाम ड्रैगन फ्रूट से बदलकर कमलम करने की कोशिश की, जिसे सरकार ने मान लिया.
कांग्रेस ने क्या कहा?
बीजेपी का चुनाव चिन्ह कमल का फूल और गुजरात गांधीनगर बीजेपी के मुख्यालय का नाम भी कमलम है. इसलिए ड्रैगन फ्रूट के नाम बदलने के पीछे राजनीति देखी जा रही है. कांग्रेस ने कहा कि फलों के नाम बदलने के बजाए बीजेपी को किसानो की हालत सुधारने पर ध्यान देना चाहिए. वहीं बीजेपी ने कहा कि उसने कमलम नाम देकर किसानो की भावनाओ का सम्मान किया है.