टुडे गुजराती न्यूज (ऑनलाइन डेस्क)
आरक्षण का मसला एक बार फिर चर्चा में है. देश भर में आरक्षण बढ़ाने की होड़ मची हुई है. केवल छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) ही नहीं, बल्कि कई राज्यों में आरक्षण की सीमा बढ़ाने को लेकर लगातार मांग उठ रही है. ताजा मामला छत्तीसगढ़ राज्य का है. यहां मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (Bhupesh Baghel) की कैबिनेट ने गुरुवार (1 दिसंबर) को दो विधेयकों के ड्राफ्ट को मंजूरी दी, जिससे राज्य में आरक्षण की सीमा 76 प्रतिशत तक पहुंच जाएगी. इसके अलावा इसी महीने झारखंड विधानसभा ने भी आरक्षण को 77 प्रतिशत करने से जुड़ा बिल पास किया था.
देश के करीब आधा दर्जन राज्य ऐसे हैं, जो 50 फीसदी आरक्षण का दायरा बढ़ाने के पक्ष में खड़े हैं ताकि उनका राजनीतिक और सामाजिक समीकरण मजबूत हो सके. इनमें महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात, तमिलनाडु, झारखंड और कर्नाटक जैसे राज्य शामिल हैं. पिछले महीने कर्नाटक ने भी आरक्षण बढ़ाया था. इसके अलावा बिहार, मध्य प्रदेश और अब छत्तीसगढ़ में भी आरक्षण बढ़ाने की मांग ने जोर पकड़ा हुआ है.
झारखंड में 77 प्रतिशत हुआ आरक्षण
इसी महीने झारखंड विधानसभा ने कुल आरक्षण को 60 प्रतिशत से बढ़ाकर 77 प्रतिशत किया है. यहां अब अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe) को 28 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा, जो पहले 26 प्रतिशत था. अनुसूचित जाति का आरक्षण 10 से बढ़ाकर 12 प्रतिशत कर दिया गया है.
हरियाणा में बढ़ा प्राइवेट सेक्टर जॉब का आरक्षण
हरियाणा में कई बार आरक्षण को लेकर मांग तेज हुई है. यहां तक की आरक्षण की मांग को लेकर कई विरोध प्रदर्शन भी हुए हैं. इसी साल मार्च में यहां हरियाणा विधानसभा ने प्राइवेट सेक्टर की नौकरियों में स्थानीय युवाओं के लिए 75 प्रतिशत आरक्षण से जुड़ा कानून पास किया था. इसके तहत 30 हजार रुपये महीने तक वाली प्राइवेट नौकरियों में स्थानीय उम्मीदवारों को 75 प्रतिशत रोजगार दिया जाएगा.
कर्नाटक में भी बढ़ा है आरक्षण
कर्नाटक हमेशा से ही आरक्षण का दायरा बढ़ाने के पक्ष में रहा है. पिछले साल यहां बीजेपी सरकार ने शिक्षा और नौकरी में एससी/एसटी आरक्षण को बढ़ाने का फैसला किया था. एससी के लिए 15 प्रतिशत आरक्षण को 2 प्रतिशत बढ़ा दिया गया है. वहीं, एसटी आरक्षण को 3 प्रतिशत से बढ़ाकर 7 प्रतिशत कर दिया गया है.
50 फीसदी तय की थी आरक्षण की सीमा
साल 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा साहनी मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए जाति-आधारित आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 फीसदी तय कर दी थी. सुप्रीम कोर्ट के इसी फैसले के बाद कानून ही बन गया कि 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता. 9 जजों की संविधान पीठ ने 6-3 के बहुमत से जाति-आधारित आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत तय की थी.
इन राज्यों में पहले से आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से ज्यादा
ईडब्ल्यूएस आरक्षण (EWS Reservation) के पहले से ही कुछ राज्यों में अधिकतम कोटा 50 प्रतिशत से ज्यादा है. इनमें से ज्यादातर को कोर्ट में चुनौती मिल चुकी है. सबसे बड़ा उदाहरण तमिलनाडु का है, जहां 1993 से 69 प्रतिशत की व्यवस्था है. 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण को लेकर बहुत अहम टिप्पणी की थी. कोर्ट ने कहा था कि आरक्षण मूल अधिकार नहीं है. यह टिप्पणी तमिलनाडु के एक आरक्षण मामले को लेकर की गई थी.
आरएसएस और बीजेपी पिछले कई सालों से आर्थिक आधार पर सामान्य वर्ग के कमजोर लोगों को आरक्षण देने की वकालत करती रही हैं. सुप्रीम कोर्ट ने EWS को 10 प्रतिशत आरक्षण देने को सही ठहराते हुए मोदी सरकार के उसी फैसले पर मुहर लगा दी है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट में यह फैसला अभी बंटा हुआ है.