मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के नए अध्यक्ष बन गए हैं, दलित नेता के तौर पर करियर शुरू करने वाले मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के मुखिया (Congress Chief) होंगे. अध्यक्ष पद के चुनाव में खड़गे ने शशि थरूर (Shashi Tharoor) को 6,825 मतों के अंतर से हराया है. इस चुनाव में मल्लिकार्जुन खड़गे को 7,897 वोट मिले, जबकि थरूर को 1,072 वोट हासिल हुए. कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव में कुल 9,385 वोट पड़े थे और इनमें से 416 वोट अवैध करार दिए गए.
नामांकन से लेकर चुनाव परिणाम के एलान तक बहुत कुछ ऐसा था, जिसने शुरुआत से ही साफ कर दिया था कि कांग्रेस के अध्यक्ष पद के इस चुनाव की रेस में मल्लिकार्जुन खड़गे आगे हैं. प्रस्तावकों की लिस्ट से भी कांग्रेस का नया लिखा जाने वाला इतिहास साफ हो गया था. हालांकि कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव में बेहतरीन इंग्लिश के लिए मशहूर शशि थरूर को कैसे एक दलित नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने हराया ये जानना बेहद जरूरी है. इस बड़ी हार जीत के 5 कारणों के बारे में हम यहां बात कर रहे हैं.
1- शशि थरूर और खड़गे के बयान
मल्लिकार्जुन खड़गे की जीत और शशि थरूर की हार के पीछे सबसे बड़ा कारण दोनों ही नेताओं के बयान हैं. बार-बार सियासी गलियारों में चर्चा थी कि भले ही खड़गे कांग्रेस अध्यक्ष निर्वाचित हो जाएं, लेकिन उनका रिमोट कंट्रोल गांधी परिवार के हाथों में ही होगा. हालांकि इस सवाल का खड़गे ने जो जवाब दिया वो उन्हें वरिष्ठ और मंजा हुआ राजनेता साबित करता है. खड़गे ने कहा कि गांधी परिवार की सलाह लेने में मुझे कोई शर्म महसूस नहीं होगी. वहीं दूसरी ओर शशि थरूर ने आलाकमान को ही सीधे निशाने पर ले लिया था. उन्होंने कहा था कि मैं कांग्रेस से आलाकमान कल्चर को ही खत्म कर दूंगा.
2- शुरुआत से ही खड़गे ने ले ली लीड
कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में नामांकन के आखिरी दिन एंट्री करने वाले मल्लिकार्जुन खड़गे ने बताया था कि नामांकन से कुछ घंटे पहले उनसे चुनाव लड़ने को कहा गया. खड़गे ने अपने बयान से पार्टी के डेलीगेट्स को इस बात का साफ संकेत दे दिया था कि वो ही गांधी परिवार के आधिकारि उम्मीदवार हैं. ऐसे में खड़गे ने अपने इस मैसेज के जरिए थरूर के खिलाफ लीड बना ली. वहीं दूसरी ओर शशि थरूर नामांकन की प्रक्रिया को समझने में वक्त दिया. वो लगातार चुनावों के दौरान अपनी मांगों के जरिए चर्चा की वजह बने रहे. उन्होंने कहा था कि डेलीगेट्स के नाम सार्वजनिक किए जाएं. वो चुनावी प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने की बात करते रहे, कांग्रेस को नई कांग्रेस बनाने की चर्चा करते रहे, लेकिन इन सबके बावजूद वो डेलिगेट्स की नज़र में अपने नंबर नहीं बना पाए.
3- बैकसपोर्ट में गांधी परिवार?
मल्लिकार्जनु खड़गे ने लेट एंट्री भले ही ली, लेकिन वो चुनाव में उतरते ही डेलिगेट्स को यकीन दिलाने में कामयाब हो गए कि गांधी परिवार का उनके पीछे सपोर्ट है. मल्लिकार्जुन खड़गे की जीत के पीछे यही सपोर्ट कुछ हद तक काम भी आया. कांग्रेस आलाकमान ने बयान जारी कर बार-बार इस संबंध में कहा कि वो चुनावों को लेकर तटस्थ हैं, लेकिन उनका कोई आधिकारिक उम्मीदवार नहीं है. हालांकि सभी को पता था कि खड़गे को चुनाव में उतारने का फैसला आलाकमान का ही था. खड़गे के चुनाव प्रचार के लिए कई राष्ट्रीय प्रवक्ताओं से इस्तीफे तक दिलाए गए. खड़गे जहां गए वहां उनका कांग्रेस के नेताओं ने तहे दिल से स्वागत किया.
4- खड़गे और थरूर का प्रचार
शशि थरूर बार-बार यूपी जाना चाहते थे, उन्होंने इस दौरान दावा किया कि मुझे रोका जा रहा है. वहीं मल्लिकार्जुन खड़गे बिना किसी तरह की बयानबाजी के प्रचार में लगे रहे. शशि थरूर ने भी नामांकन के दौरान खड़गे को पार्टी का भीष्म पितामह तक कह दिया था. हालांकि उन्होंने साफ कर दिया कि वो कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ेंगे और नाम वापस लेने वाले नहीं हैं.
5- यहीं लिख गई थी खड़गे की जीत की कहानी
मल्लिकार्जुन खड़गे के प्रस्तावकों में जो नाम थे उसी से साफ हो गया था कि उन्हें गांधी परिवार का सपोर्ट हासिल हैं. दिग्विजय सिंह ने खड़गे का नाम सामने आने के बाद खुद ही नामांकन दाखिल करने से मना कर दिया था. वहीं अशोक गहलोत ने भी साफ कर दिया था कि उनका और कई वरिष्ठ नेताओं का का सपोर्ट खड़गे को ही है. शशि थरूर के प्रस्तावकों में जहां कुछ ही बड़े नेता था, जबकि खड़गे के प्रस्तावकों की लिस्ट में 30 बड़े नेताओं का नाम शामिल था. जी-23 के बड़े चेहरे आनंद शर्मा और मनीष तिवारी ने शशि थरूर की जगह खड़गे को सपोर्ट किया. जबकि शशि थरूर जी-23 समूह में शामिल रहे थे. ऐसे में थरूर को प्रस्तावकों से ही झटका मिलना शुरू हो गया था.