टुडे गुजराती न्यूज (ऑनलाइन डेस्क)
नीतीश कुमार निराश चल रहे हैं। कारण तो कई हैं लेकिन एक बात पर हंगामा मचा हुआ है। बिहार में आबादी की रफ्तार कैसे रोकी जाए। समाधान यात्रा पर निकले नीतीश कुमार ने इस समस्या का समाधान बताते हुए उन्होंने कुछ उटपटांग बात कह दी। या संवाद में चूक हो गई। उन्होंने कहा – मर्द तो रोज-रोज बोलता है, अगर महिला पढ़ी लिखी रहती है तो उसको सब चीज का ज्ञान रहता है। मुख्यमंत्री पोशाक योजना, साइकिल योजना, कस्तूरबा स्कूल, ग्रेजुएशन के लिए 50 हजार रुपए की नकद सहायता जैसे कार्यक्रमों के बावजूद नीतीश कुमार 17 साल की सरकार में राष्ट्रीय औसत को छू क्यों नहीं पाए। 1991 में बिहार की आबादी 1981 के मुकाबले 23.38 प्रतिशत बढ़ी। 2001 में 28.62 फीसदी बढ़ी। इस बीच लालू प्रसाद यादव भी नौ बच्चों के पिता बन गए। लेकिन नीतीश के आने के बाद भी रफ्तार पर कोई खास ब्रेक लगता हुआ नहीं दिखा। 2011 में ये 25.5 प्रतिशत की दर से बढ़ी। और अब तो हम महाराष्ट्र को पीछे छोड़ उत्तर प्रदेश के बाद देश की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला प्रदेश बन चुके हैं। 2011 की रफ्तार बड़े राज्यों में सबसे तेज थी। जबकि नीतीश कुमार आधी आबादी के सीएम माने जाते हैं।अब कुछ और आंकड़ों पर नीतीश कुमार को तौलते हैं। 2018-19 में 24 लाख तीन हजार 526 बच्चों ने पहली क्लास में दाखिला लिया। लेकिन दसवीं में सिर्फ 15 लाख 37 हजार बच्चों ने दाखिला लिया और 12वीं में तो ये घटकर छह लाख 31 हजार रह गई।
माना हमारे जैसे युवा कैंपस में क्राइम और ग्रेजुएशन की पंचवर्षीय योजना के डर से दिल्ली भाग आए पर कितने बच्चे ऐसे होंगे जो ये खर्च उठा सकते हैं। और जब बात लड़कियों की आती है तो डेटा और बिगड़ जाता है। 2018-19 में 11 लाख 52 हजार 680 लड़कियों ने पहली क्लास में दाखिला लिया पर सिर्फ तीन लाख लड़कियां 12वीं में पहुंची। नेशनल स्टैटिस्किल रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में ड्रॉप आउट रेट 30.5 प्रतिशत रही। यानी नीतीश कुमार के खोखले दावों के बीच 100 में 30 बच्चे पढ़ाई छोड़ रहे हैं। जो बचे हैं वो शिक्षा मित्रों की अयोग्यता के सहारे क्या मुकाम हासिल करेंगे, कहना मुश्किल है। कम से कम लालू राज में दो बार प्रतियोगी परीक्षाओं के जरिए शिक्षकों की भर्तियां हुईं।
लेकिन नीतीश कुमार ने वोट बैंक पॉलिटिक्स के चलते तीन लाख से ज्यादा टीचर्स डायरेक्ट बहाल कर दिए।नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के मुताबिक बिहार की 61 परसेंट लड़कियां स्कूल जाती हैं लेकिन सिर्फ 29 प्रतिशत दस साल की स्कूलिंग पूरी कर पाती हैं। मतलब मैट्रिक या नौवीं तक पढ़ पाती हैं। 15 से 49 साल की उम्र की महिलाओं में साक्षरता दर 55 प्रतिशत है। पुरुषों की 76.7 प्रतिशत। दूसरी ओर महिलाओं का राष्ट्रीय औसत 71.5 और पुरुषों का 84.4 प्रतिशत है। सिर्फ पांच राज्य ऐसे हैं जहां प्रजनन दर 2.1 से ज्यादा है। बिहार में ये 2.98 है। यानी एक महिला औसतन तीन बच्चों को जन्म देती है। बिहार के बाद मेघालय, यूपी, झारखंड और मणिपुर है। जबकि राष्ट्रीय औसत दो पर आ चुका है।
बिहार में अभी भी 80 प्रतिशत लोग खेती पर निर्भर हैं और जोत छोटी होती जा रही है। वर्कफोर्स में महिलाओं की भागीदारी कहीं ज्यादा है। बिहार में शहरीकरण में लगातार पिछड़ता जा रहा है। 2011 की जनगणना के मुताबिक शहरीकरण का राष्ट्रीय स्तर 31 परसेंट है तो बिहार का सिर्फ 11 परसेंट। दूसरी ओर देश की 8.6 परसेंट आबादी बिहार में रहती है। ऐसी परिस्थितियों में जन्मी लड़कियों को कैसा वातावरण मिलेगा, ये समझना मुश्किल नहीं है। बिहार में एक हजार बच्चों में 29 की मौत जन्म लेते ही हो जाती है। वहीं एक हजार में 15 माताओं की मौत प्रसव के दौरान हो जाती है। इस मामले में बिहार मध्य प्रदेश के बाद शर्मनाक तौर पर दूसरे पायदान पर है।इन आंकड़ों से साबित होता है कि नीतीश सरकार जननी सुरक्षा योजना, जननी शिशु सुरक्षा योजना, पीएम सुरक्षित मातृत्व अभियान जैसे कार्यक्रमों को लागू करने में फिसड्डी साबित हुई है। मर्दों के बारे में अनाप शनाप कहने वाले नीतीश ने गांव-जवार में गर्भनिरोधकों पर कितना काम किया है उसे भी देख लेते हैं। इंडिया स्पेंड ने बिहार के दो जिलों में सर्वे किया। 15 से 49 साल उम्र की 94 प्रतिशत महिलाएं सेक्सुअली एक्टिव हैं। इनको गर्भनिरोध के आठ उपायों में से कम से कम एक की जानकारी है लेकिन पांच में एक महिला ही किसी भी साधन का इस्तेमाल करती है। अविवाहित 42 प्रतिशत महिलाएं गर्भनिरोधक का यूज करती हैं जबकि सिर्फ 27 प्रतिशत शादीशुदा महिलाएं इसका इस्तेमाल करती हैं।
अब मर्दों को खरी खोटी सुनाने वाले नीतीश कुमार ये भी देख लें कि आखिर क्यों बिहार की महिलाएं गर्भनिरोधकों से परहेज करती हैं। तो सबसे ज्यादा 15 प्रतिशत महिलाओं ने कहा कि उन्हें साइड इफेक्ट का डर है। इसके बाद 12 प्रतिशत महिलाओं ने माना कि उन्हें गर्भवती होना है, इसलिए इस्तेमाल नहीं करती हैं। आठ प्रतिशत ने कहा कि बस इसके इस्तेमाल का ख्याल नहीं आता। सिर्फ 7.8 प्रतिशत महिलाओं ने बताया कि उनका पति इसका विरोध करता है।