टुडे गुजराती न्यूज (ऑनलाइन डेस्क)
डॉ. भरत सिंह चंदेल ने वर्ष 1982 में प्रतिष्ठित जीबी पंत विश्वविद्यालय, पंतनगर, से अपना बीवीएससी और एएच डिग्री पूरा किया और जून 1982 में गुजरात के बनास डेयरी में बतौर पशु चिकित्सा अधिकारी शामिल हुए। 4 महीने के बाद, वे वेटरनरी कॉलेज, सरदारकृषिनगर, गुजरात कृषि विश्वविद्यालय में पशु चिकित्सा अधिकारी के पद पर कार्यरत हुए।
उन्होंने वेटरनरी कॉलेज के प्रथम आचार्य स्व. डॉ वीएम झाला के अधीन सेवारत रहते हुए मास्टर डिग्री (एमवीएससी) प्राप्त की। वर्ष 1988 में उनका चयन सहायक प्रोफेसर के पद पर हो गया। वर्ष 1991 में उन्हें सीएसआईआर फेलोशिप से सम्मानित किया गया। उन्होंने वेटरनरी कॉलेज, आणंद, गुजरात कृषि विश्वविद्यालय, से पीएचडी की डिग्री प्राप्त की है। माइक्रोबायोलॉजी विभाग, वेटरनरी कॉलेज, सरदारकृषिनगर, गुजरात, में विभिन्न क्षमताओं में काम करते हुए, डॉ. सिंह को डीबीटी से ब्लू टंग वायरस पर प्रोजेक्ट और आईसीएआर-एआईसीआरपी से टीएलआर प्रोजेक्ट लाने का श्रेय प्राप्त है। वह आरबो-वायरस पर इंडो-यूके रिसर्च प्रोजेक्ट से भी जुड़े थे। उन्होंने ब्रुसेलोसिस पर भी डीबीटी रिसर्च प्रोजेक्ट को सफलतापूर्वक पूर्ण किया है। इसी वर्ष डॉ. सिंह माइक्रोबायोलॉजी विभाग, वेटरनरी कॉलेज, कामधेनु विश्वविद्यालय, सरदारकृषिनगर, के विभागीय प्रमुख एवं प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हुए थे।
डो भरतसिंह चंदेल बचपन से ही, रिचर्स एवम संशोधन में रुचि रखते थे ,वे वर्तमान में एमडी एंडरसन कैंसर रिसर्च सेंटर, कैलिफ़ोर्निया, यू.एस., के सहयोग से कैंसर चिकित्सा विज्ञान पर काम कर रहे हैं। वह ब्रुसेलोसिस रोग के नियंत्रण के लिए न्यूट्रास्युटिकल सप्लीमेंट्स पर भी काम कर रहे हैं। डॉ. सिंह आयुर्वेदिक एकीकृत उपचार पद्धति और हर्बल दवाओं की उपचार शक्ति में दृढ़ विश्वास रखते हैं और वर्तमान में इस विषय पर उनका अनुसन्धान कार्य जारी है। उनके उपलब्धियों को ध्यान में रखते हुए भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद् ने डॉ. भरत सिंह चन्देल को अब से अगले 3 वर्ष के लिए प्रतिष्ठित एमेरिटस वैज्ञानिक के रूप में चयनित किया है।
टुडे गुजराती न्यूज ने जब डो भरतसिंह चंदेल से सवाल किया की क्या होती है आयुर्वेदिक जड़ी बूटिया (What is Ayurvedic herb)
डो भरतसिंह चंदेल का जवाब यह था की आयुर्वेदिक जड़ी बूटिया का सबसे बड़ा फायदा यह है की वो साइड इफेक्ट नहीं करती जड़ी-बूटियो के अनेक औषधीय व अध्यात्मिक उपयोग है। जड़ी-बूटियां अपने औषधीय गुणों के लिए, भोजन, स्वाद, दवा या सुगंध के लिए इस्तेमाल होती है। अपने भी भारत के आयुर्वेद के अलावा भारत में पाए जाने वाले स्थानीय संस्कृति में कई चमत्कारिक पौधों के बारे में सुना होगा। भारत में एक ऐसी जड़ी है जिसको खाने से व्यक्ति गायब रहता है। जब तक उस जड़ी का व्यक्ति पर असर रहता है साथ ही एक ऐसी भी जड़ी है जिसे खाने से व्यक्ति को भूत-भविष्य का ज्ञान हो जाता है। भारत में कुछ ऐसे भी जड़ी बूटिया है जिनके बल पर स्वर्ण बनाया जा सकता है। “जड़ी बूटी” के सामान्य उपयोग पर पाक-संबंधी जड़ी-बूटियां और औषधीय जड़ी-बूटियां अलग है। आईये कुछ जड़ी-बूटियों के बारे में विस्तार से जाने।
गिलोई |
1. गिलोय (Giloy): गिलोय को कुछ लोग अमृता तो कुछ लोग गुडूचि के नाम से जानते है। गिलोय अथवा अमृता ये जड़ी खुद अपने नाम से ही अपने गुण को दर्शाती है। यह एक बेल होती है जिसके तने से रस निकालकर अथवा सत्व बनाकर प्रयोग किया जाता है। गिलोय स्वाद में कड़वी होती है लेकिन त्रिदोषनाशक होती है। इसका प्रयोग वातरक्त (गाउट), आमवात (आर्थराइटिस), त्वचा रोग, प्रमेह, हृदय रोग आदि रोगों में होता है। गिलोय डेंगू होने पर द्ब्रलड प्लेटलेट्स की घटी मात्रा को बहुत जल्दी सामान्य करती है। गिलोय खून के अत्यधिक बह जाने और प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए तो रामबाण होती है।
अश्वगंधा |
2. अश्वगंधा (Ashwagandha): अश्वगंधा आयुर्वेद में अत्यधिक प्रयोग होने वाली औषधि है। औषधि के लिए अश्वगंधा की जड़ों को प्रयोग किया जाता है अश्वगंधा की जड़ को सुखाकर चूर्ण बनाकर उपयोग में लाया जाता है। इसके चूर्ण के सत्व का सेवन तो और भी ज्यादा लाभदायक है। अश्वगंधा चूर्ण बलकारी, शरीर की इम्युनिटी को बढ़ाने वाला, शुक्रवर्धक खोई हुई ऊर्जा को दोबारा देकर लंबी उम्र का वरदान देता है।
शतावरी |
3. शतावरी (Asparagus): शतावरी एक जड़ी होती है। इसका कोई पौधा नहीं होता, ये एक बेल होती है। शतावरी की बेल की जड़ को सुखाकर चूर्ण के रूप में उपयोग किया जाता है। शतावरी भी रसायन औषधि है। यह बौद्धिक विकास, पाचन को सुदृढ़ करने वाली, नेत्र ज्योति को बढ़ाने वाली, उदर गत वायु दोष को ठीक करने वाली, शुक्र बढ़ाने वाली, नव प्रसूता माताओं में स्तन” को बढ़ाने वाली औषधि है।
आंवला |
4. आंवला (Gooseberry): आंवला एक ऐसा फल है जिसे सभी लोगों ने खाया होगा। परन्तु क्या आपको आंवले के फायदे पता है। आंवले को आयुर्वेद की संहिताओं में रसायन कहा गया है। आंवले को प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए इस्तमाल किया जाता है। इसके अलावा आंवले को त्वचारोगहर, ज्वरनाशक, रक्तपित्त हर, अतिसार, प्रवाहिका, हृदय रोग आदि में बेहद लाभकारी माना गया है। आंवले का नियमित सेवन से लंबी आयु की गारंटी भी देता है।
मुलहठी |
5. मुलहठी (Firewood): मुलहठी भी एक जड़ी है इसका इस्तमाल भी औषधि की तरह किया जाता है मुलहठी के तने का प्रयोग अधिकतर किया जाता है। यह बलवर्धक, दृष्टिवर्धक, पौरुष शक्ति की वृद्धि करने वाली, वर्ण को आभायुक्त करने वाली, खांसी, स्वरभेद, व्रणरोपण तथा वातरक्त में अत्यंत उपयोगी होती है
मुलहठी का उपयोग पेप्टिक अल्सर के इलाज में किया जाता है। एसिडिटी के इलाज में तो यह बेहद कारगर है।
ब्राह्मी |
6. ब्राह्मी (Brahmi): ब्राह्मी देखने में तो सामान्य सी झाड़ी लगती है लेकिन ये बेहद असरकारी होता है। इसके अलावा इसका उपयोग ज्वर, त्वचा रोगों, प्लीहा संबंधी विकारों में भी होता है। यह नर्वस सिस्टम के लिए अचूक औषधि है। यह बच्चों के लिए स्मृति और मेधावर्धक है। मिर्गी में इसका खासतौर पर प्रयोग होता है। मानसिक विकारों के इलाज के लिए तो यह रामबाण है।