42 साल के भारतवंशी ऋषि सुनक ब्रिटेन के नए प्रधानमंत्री बन गए. सुनक ने बकिंघम पैलेस पहुंचकर किंग चार्ल्स से मुलाकात की. किंग ने उन्हें ब्रिटेन का प्रधानमंत्री नियुक्त किया है. बकिंघम पैलेस से ऋषि 10 डाउनिंग स्ट्रीट पहुंचे. यहां उन्होंने बतौर प्रधानमंत्री देश के नाम पहला संबोधन दिया.
ऋषि सुनक (Rishi Sunak) ने बकिंघम पैलेस में किंग चार्ल्स से मुलाकात की है. अब सुनक ब्रिटेन के पहले भारतीय मूल के प्रधानमंत्री बन गए हैं.. इससे पहले, लिज़ ट्रस (Liz truss), जिन्होंने सत्ता में केवल 44 दिनों के बाद प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था.
ब्रिटेन का पीएम नियुक्त किए जाने के बाद सुनक ने अपने पहले संबोधन में कहा, “हमारा देश गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा है, मुश्किल फैसले लिए जाएंगे’.
प्रधानमंत्री के आधिकारिक आवास 10 डाउनिंग स्ट्रीट के बाहर सुनक ने कहा कि वह देश के सामने गंभीर आर्थिक संकट का सामना सहानुभूतिपूर्ण तरीके से करेंगे और एक ‘‘ईमानदार, पेशेवर तथा जवाबदेह” सरकार का नेतृत्व करेंगे.
सुनक ने कहा कि उन्हें उनकी पूर्ववर्ती लिज ट्रस द्वारा की गई ‘गलतियों को दुरुस्त करने’ के लिए कंजर्वेटिव पार्टी का नेता और प्रधानमंत्री चुना गया है। उन्होंने कहा, ‘वह काम तुरंत शुरू किया जा रहा है.’
उन्होंने कहा कि बतौर मंत्री अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने ‘फरलो’ जैसी योजनाओं के माध्यम से ‘आम लोगों और व्यवसाय की रक्षा के लिए” वह सब कुछ किया, जो वह कर सकते थे.
सुनक ने कहा, ‘ आज हम जिन चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, मैं उनसे उसी तरह सहानुभूतिपूर्ण तरीके से निपटने का प्रयास करूंगा।” उन्होंने कहा कि वह अगली पीढ़ी पर ‘यह कहने के लिए ऋण नहीं छोड़ेंगे कि हम खुद भुगतान करने में अक्षम थे.”
सुनक ने कहा, ‘मैं अपने देश को कथनी से नहीं, बल्कि करनी से एकजुट करूंगा। मैं आपके लिए दिन-रात काम करूंगा। हम एकजुट होकर अविश्वसनीय चीजें हासिल कर सकते हैं.’
सुनक ने ऐसे समय सत्ता की कमान संभाली है, जब ब्रिटेन धीमी गति से विकास , उच्च मुद्रास्फीति, यूक्रेन युद्ध के मद्देनजर ऊर्जा की कीमतों में बढ़ोतरी और बजट घाटा जैसे मुद्दों से जूझ रहा है, जिसने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश की वित्तीय विश्वसनीयता को कमजोर किया है.
उनका पहला काम ब्रिटेन की अंतरराष्ट्रीय वित्तीय विश्वसनीयता को बहाल करना होगा, क्योंकि निवर्तमान प्रधानमंत्री लिज ट्रस द्वारा करों में कटौती किये जाने की योजना और एक महंगी ऊर्जा मूल्य गारंटी ने बांड बाजार को झकझोर दिया. उसके पास कर दरों को बढ़ाने और खर्च में कटौती करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा, जो अलोकप्रिय होगा और इसके अप्रत्याशित राजनीतिक परिणाम भी हो सकते हैं.