केंद्र ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि सरकार संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में भारतीय दंड संहिता की धारा 124 (ए) के तहत देशद्रोह कानून में बदलाव ला सकती है। शीर्ष अदालत देशद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। सुप्रीम अदालत ने देशद्रोह कानून को चुनौती देने वाली कुछ याचिकाओं पर केंद्र सरकार को नोटिस भी जारी किया है। भारत के मुख्य न्यायाधीश उदय उमेश ललित के नेतृत्व वाली पीठ ने देशद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने के मामले की सुनवाई अगले साल जनवरी के दूसरे सप्ताह तक टाल दी है।
कोर्ट ने कहा कि विवादास्पद राजद्रोह कानून और इसके परिणामस्वरूप दर्ज की जाने वाली प्राथमिकियों पर अस्थायी रोक लगाने वाला आदेश बरकरार रहेगा। उच्चतम न्यायालय ने केंद्र को औपनिवेशिक काल के इस प्रावधान की समीक्षा करने के लिए ‘उपयुक्त कदम’ उठाने के वास्ते सोमवार को अतिरिक्त समय दे दिया। प्रधान न्यायाधीश उदय उमेश ललित और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट्ट तथा बेला एम त्रिवेदी की पीठ से महान्यायवादी (अटार्नी जनरल) आर वेंकटरमानी ने कहा कि केंद्र को कुछ और वक्त दिया जाए क्योंकि ‘‘संसद के शीतकालीन सत्र में (इस सिलसिले में) कुछ हो सकता है।’’
पीठ ने कहा, ‘‘श्री आर वेंकटरमानी, अटार्नी जनरल, ने दलील दी है कि 11 मई 2022 को इस न्यायालय द्वारा जारी किये गये निर्देशों के संदर्भ में यह विषय संबद्ध प्राधिकारों का अब भी ध्यान आकृष्ट कर रहा है। उन्होंने आग्रह किया कि कुछ अतिरिक्त समय दिया जाए, ताकि सरकार द्वारा उपयुक्त कदम उठाया जा सके।’’ शीर्ष न्यायालय ने कहा, ‘‘इस न्यायालय द्वारा 11 मई 2022 को जारी अंतरिम निर्देशों के मद्देनजर… प्रत्येक हित और संबद्ध रुख का संरक्षण किया गया है तथा किसी के प्रति कोई पूर्वाग्रह नहीं है। उनके अनुरोध पर हम विषय को जनवरी 2023 के दूसरे हफ्ते के लिए स्थगित करते हैं।’’ पीठ ने विषय पर दायर कुछ अन्य याचिकाओं पर भी गौर किया और केंद्र को नोटिस जारी कर छह हफ्तों में जवाब मांगा।भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए के तहत देशद्रोह अपराध की श्रेणी में आता है। इससे पहले मई में, सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि जब तक सरकार इसकी समीक्षा नहीं करती तब तक विवादास्पद देशद्रोह कानून पर रोक रहेगी। कोर्ट ने कहा था कि देशद्रोह के आरोप में जेल में बंद लोग जमानत के लिए अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए, जो देशद्रोह के अपराध को अपराध बनाती है, को तब तक स्थगित रखा जाए जब तक कि सरकार द्वारा कानून की समीक्षा करने की कवायद पूरी नहीं हो जाती।
भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और हेमा कोहली की पीठ ने केंद्र सरकार और राज्यों से धारा 124 ए के तहत कोई भी मामला दर्ज नहीं करने को कहा था। पीठ ने कहा कि अगर भविष्य में ऐसे मामले दर्ज किए जाते हैं, तो वह पक्ष अदालत का दरवाजा खटखटाने के लिए स्वतंत्र हैं। कोर्ट ने ये भी कहा कि ऐसी स्थिति में अदालत को इसका तेजी से निपटान करना होगा। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा था कि जिन लोगों पर पहले से ही आईपीसी की धारा 124ए के तहत मामला दर्ज है और वे जेल में हैं, वे सभी जमानत के लिए संबंधित अदालतों का दरवाजा खटखटा सकते हैं।