नाक में उंगली डालना एक ऐसी आदत है, जिसे देखकर घिन आने लगती है। आसपास बैठे लोगों को यह हरकत असहज कर देती है। कुछ लोग तो नाक में उंगली डालने के साथ नाक के बाल भी नोंचते हैं। लेकिन इन लोगों के लिए एक खतरनाक खबर सामने आई है, जिसे सुनकर पैरों तले जमीन खिसक जाएगी। दरअसल, एक रिसर्च के मुताबिक, नाक में उंगली डालना या नाक के बाल नोंचने से आपको खतरनाक दिमागी बीमारी अल्जाइमर और डिमेंशिया (Alzheimer’s disease and Dementia) हो सकती है। जिसमें दिमाग सिकुड़ने लगता है।
क्या कहती है शोध?
साइंटिफिक रिपोर्ट्स में छपी ग्रिफिथ यूनिवर्सिटी की रिसर्च के मुताबिक, नाक में उंगली डालने से अल्जाइमर्स डिजीज और डिमेंशिया जैसी बीमारी का खतरा बढ़ जाता है। क्योंकि, हमारी नाक में मौजूद ओलफेक्ट्री नर्व (olfactory nerve) दिमाग से सीधी जुड़ी होती है और वायरस व बैक्टीरिया इस रास्ते से होते हुए सीधे दिमाग की कोशिकाओं तक पहुंच जाते हैं।
क्लेम सेंटर फॉर न्यूरोबायोलॉजी और स्टेम सेल रिसर्च सेंटर में हुए शोध के प्रमुख प्रोफेसर जेम्स सेंट जॉन ने बताया कि यह अध्ययन चूहों पर किया गया था। जिसमें देखा गया कि अल्जाइमर और डिमेंशिया का कारण बनने वाला बैक्टीरिया नाक की नली से होते हुए चूहों के अंदरुनी दिमाग में पहुंच जाता है और फिर अल्जाइमर के लक्षण (Alzheimer’s Disease Symptoms) जैसे संकेत मिलने लगते हैं।
अल्जाइमर रोग कैसे होता है? अल्जाइमर का कारण बनने वाले बैक्टीरिया का नाम क्लामाइडिया न्यूमेनिए (Chlamydia pneumoniae) है, जो निमोनिया का कारण भी बनता है। यह बैक्टीरिया नाक की नली से होते हुए नर्वस सिस्टम तक पहुंचता है। जिसकी प्रतिक्रिया में दिमाग की सेल्स एमिलॉएड बीटा प्रोटीन का उत्पादन करती हैं। जो कि अल्जाइमर रोग विकसित होने का प्रमुख संकेत है। डिमेंशिया व अल्जाइमर के मरीजों के मस्तिष्क में यह प्रोटीन पाया जाता है।डिमेंशिया रोग क्या है? डिमेंशिया एक समूह है, जिसमें विभिन्न बीमारियों के कारण दिमाग को नुकसान पहुंचने पर दिखने वाले लक्षणों को शामिल किया जाता है। अल्जाइमर के लक्षण भी डिमेंशिया के अंदर ही आते हैं। मायोक्लीनिक के मुताबिक, अल्जाइमर एक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है, जिसमें धीरे-धीरे दिमाग सिकुड़ने लगता है और मस्तिष्क की कोशिकाएं नष्ट होने लगती हैं। इस बीमारी के कारण मस्तिष्क में मौजूद हिपोकैंपस हिस्सा सबसे पहले प्रभावित होता है, जो कि सीखने और याद रखने का काम करता है। एक अनुमान के मुताबिक, करीब 40 लाख भारतीयों को किसी ना किसी तरह का डिमेंशिया है।