गुजरात विधानसभा चुनाव को हाई सियासी वोल्टेज अभियान बनाने से परहेज कर रही कांग्रेस इस बार टिकट बंटवारे में भी विशेष सतर्कता बरतने की रणनीति अपना रही है। यह तय किया गया है कि प्रदेश कांग्रेस के बड़े नेताओं के बीच अपने समर्थकों को टिकट दिलाने के लिए आपसी बंदरबांट की रणनीति पर लगाम कसा जाएगा। पार्टी नेतृत्व ने उम्मीदवार तय करने के लिए अपने स्तर पर भी जमीनी आकलन कराया है।
गुजरात के उम्मीदवारों की पहली सूची पर कांग्रेस की केंद्रीय चुनाव समिति ने पिछले हफ्ते ही मुहर लगा दी थी और चुनावी तारीखों के ऐलान का इंतजार किया जा रहा था। पार्टी के रणनीतिकारों से मिले संकेतों के अनुसार अगले दो-तीन दिनों के भीतर ही करीब सौ उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी जाएगी। प्रदेश चुनाव समिति और स्क्रीनिंग कमिटी के स्तर पर छानबीन के बाद संभावित उम्मीदवारों के लिए कराए गए जमीनी सर्वेक्षण और फीडबैक का भी आकलन किया गया है। ताकि गुजरात चुनाव में ज्यादा से ज्यादा सक्षम और प्रभावशाली उम्मीदवारों को पार्टी मैदान में उतार सके।
उम्मीदवारों के चयन में कांग्रेस की विशेष सतर्कता की वजह 2017 के विधानसभा चुनाव का कटु अनुभव है जब बेहद कांटे के मुकाबले में पार्टी सत्ता से दूर रह गई थी। पराजय के कारणों का विश्लेषण करने के दौरान पार्टी का यह आकलन था कि बड़े नेताओं की क्षमता पर अत्यधिक भरोसा कर उनके सिफारिशी लोगों को अधिक संख्या में उम्मीदवार बनाना हार की एक बड़ी वजह रही। तब कांग्रेस ने हार्दिक पटेल जेसे पार्टी में नए आए नेता की सिफारिश पर उनके करीब 20 समर्थकों को टिकट दिया मगर इसमें सात-आठ लोग ही जीत पाए। अल्पेश ठाकुर भी करीब 14-15 टिकट अपने समर्थकों को दिलाने में कामयाब रहे मगर इसमें से जीते केवल दो-तीन ही।कांग्रेस के पुराने दिग्गज भरत सोलंकी, अर्जुन मोडवाडिया, शक्ति सिंह गोहिल से लेकर सिद्धार्थ पटेल जैसे नेताओं ने भी अपने कई समर्थकों को उम्मीदवार बनवाया। मगर ये तमाम नेता अपने समर्थकों को जिताना तो दूर खुद भी चुनाव हार गए थे। गुजरात के 2017 के चुनाव में भाजपा भारी मशक्कत के बाद 99 सीटों के साथ बहुमत का आंकड़ा छू पायी और कांग्रेस के आंकड़ों की सूई 77 सीटों पर ही अटक गई। कांग्रेस इस तरह भाजपा से पिछले चुनाव में 22 सीटें पीछे रह गई और इसमें पार्टी के दिग्गज नेताओं के साथ उनके सिफारिशी उम्मीदवारों की हार ने ही यह अंतर बढ़ाया।