टुडे गुजराती न्यूज (ऑनलाइन डेस्क)
जोशीमठ में जमीन खिसक रही है. यह देश और राज्य के लिए बड़ी चिंता का विषय होना चाहिए. इलाके में अब तक 600 से ज्यादा घरों में दरारें आ चुकी हैं. राज्य और केंद्र सरकार इस विषय को लेकर हाई लेवल मीटिंग कर रही है. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इलाके का दौरा कर स्थिति का जायजा लिया. हिमालयी क्षेत्र में भूस्खलन होना कोई नई बात नहीं है. सबसे ज्यादा सोचने वाली बात यह है कि यह सब एकाएक नहीं हुआ है. इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं.
विकास या विनाश, जोशीमठ में ये क्या हो रहा है?
लोगों का मानना है कि पहाड़ों पर विकास के नाम पर हो रहा खनन इसका मुख्य कारण है. मनुष्य विकास के नाम पर तेजी से प्राकृतिक संपदा का दोहन करता जा रहा है. सच्चाई यह भी है कि जीवन जीने के लिए इंसान ने विकास को पैमाना मान लिया है. जब जोशीमठ के लोग घर छोड़कर पलायन कर रहे हैं तो एकाएक सबकी नींद खुल गई है. सवाल है कि क्या हमें विकास के नाम पर पहाड़ी इलाकों के साथ छेड़छाड़ करने की जरुरत है? अब हम कहते हैं कि हिमालयी क्षेत्र को बचाने के लिए हमें युद्धस्तर पर काम करना होगा.योजनाओं पर विचार करने की जरूरत
पहले वाली योजनाओं को हटाकर अब नई योजनाओं पर विचार करने की आवश्यकता होगी. एक और बड़ी सच्चाई यह है कि आज से 47 साल पहले अगर हम चेत जाते तो यह नौबत नहीं आती. साल 1976 में तत्कालीन गढ़वाल मंडलायुक्त महेश चंद्र मिश्रा की अध्यक्षता में गठित विशेषज्ञों की कमेटी ने जोशीमठ में ऐसे खतरों को लेकर सचेत किया था.
इस दौरान उन्होंने भूस्खलन क्षेत्र में बसे इस शहर में पानी की निकासी को पुख्ता इंतजाम करने और अलकनंदा नदी से भूमि कटाव की रोकथाम के लिए प्रभावी कदम उठाने के सुझाव दिए गए थे. हालांकि शासन-प्रशासन ने धीरे-धीरे इसकी अंदेखी कर दी. आज इतने सालों बाद हालात बद से बदतर होने की स्थिति में पहुंच चुकी है. इसके लिए किसे जिम्मेदार समझे?