टुडे गुजराती न्यूज (ऑनलाइन डेस्क)
दुष्प्रचार और अफवाहें किस कदर खतरनाक हो सकती हैं इससे हम सब वाकिफ हैं. ये झुंझलाहट पैदा करती है तो इनसे दुनिया में जंग तक की नौबत आ सकती है. कई ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं जब इनकी वजह से समाज में फूट पड़ी और बड़े पैमाने पर कलह- झगड़ा हुआ है. ये झूठी होने के बाद भी इस कदर मजबूत होती हैं कि चुनावों के नतीजों तक असर डालने का दम रखती हैं.
सोशल मीडिया के दौर में ये खतरा बेहद बढ़ा हुआ है. जब भू-राजनीतिक आकांक्षाओं वाले साइबर हैकर, किसी विचारधारा को पागलपन की हद तक मानने वाले लोग, हिंसक चरमपंथियों और पैसे लेकर खतरों पर खेलने वाले लोग सोशल मीडिया का इस्तेमाल अपने गलत मकसद के लिए करते हैं. इस तरह से भ्रामक और झूठे तरीकों से गलत सूचनाओं को फैलाने वाले लोगों के हाथ डीपफेक के तौर पर अब एक नया हथियार लगा है.
आखिर ये डीपफेक है क्या?
डीपफेक का मतलब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस- एआई के जरिए डिजिटल मीडिया में हेरफेर करना है. एआई के इस्तेमाल से शरारती तत्व वीडियो, ऑडियो, और फोटोज में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल कर हेरफेर यानी मनिप्युलेशन और एडिटिंग को अंजाम देते हैं. एक तरह से देखा जाए तो ये बेहद वास्तविक लगना वाला डिजिटल फर्जीवाड़ा है, इसलिए इसे डीपफेक नाम दिया गया है.
ये डीपफेक व्यक्तियों और संस्थानों को नुकसान पहुंचाने के लिए बनाए जाते हैं. खासकर मशहूर हस्तियों और संस्थानों को बदनाम करने के लिए इस्तेमाल में लाए जाते हैं. कमोडिटी क्लाउड कंप्यूटिंग तक पहुंच, सार्वजनिक अनुसंधान एआई एल्गोरिदम, भरपूर इंटरनेट डेटा और विशाल मीडिया की मौजूदगी ने डिजिटल मीडिया में हेरफेर का लोकतंत्रीकरण करने के लिए मुफीद हालात पैदा कर दिए हैं.
इस सिंथेटिक मीडिया सामग्री को डीपफेक कहा जाता है. हाल के वर्षों में “सिंथेटिक मीडिया” शब्द का इस्तेमाल आम बोलचाल में वीडियो, इमेज, टेक्स्ट या आवाज सभी के एक साथ इस्तेमाल के लिए किया जाता है, जो पूरे या आंशिक तौर पर कंप्यूटर से बनाए जाते हैं.
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) से पैदा किया गया सिंथेटिक मीडिया या डीपफेक कुछ क्षेत्रों में बेहद फायदेमंद साबित होता है. उदाहरण के लिए शिक्षा, फिल्म निर्माण, आपराधिक फोरेंसिक और कलात्मक अभिव्यक्ति में ये बहुत काम की चीज है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का मतलब एक मशीन में इंसान की तरह सोचने-समझने और निर्णय लेने की क्षमता का विकास करना है.
यही वजह है कि इसे कंप्यूटर साइंस में सबसे बेहतरीन और टॉप माना जाता है. इसमें कंप्यूटर को इस तरह से तैयार किया जाता है कि वो बिल्कुल इंसान की तरह से सोच कर काम कर सकें. इस सबके साथ इसका बहुत बड़ा नुकसान भी है. जैसे-जैसे सिंथेटिक मीडिया में टेक्नोलॉजी का दखल बढ़ रहा है, वैसे-वैसे इसके जरिए शोषण का खतरा भी बढ़ता जा रहा है. रोबोट्स, कंप्यूटर्स से लेकर मोबाइल एप्लीकेशन में एल्गोरिदम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस इस्तेमाल में लाई जाती है.
डीपफेक का इस्तेमाल किसी मशहूर शख्स की शोहरत को नुकसान पहुंचाने, झूठे सबूत गढ़ने, जनता को धोखा देने और लोकतांत्रिक संस्थानों में लोगों का विश्वास कम करने के लिए किया जा सकता है. हैरानी की बात ये है कि बड़े तौर पर नुकसान करने वाला ये काम बेहद कम संसाधनों के साथ अंजाम दिया जा सकता है.
इतना ही नहीं यह बड़े पैमाने और रफ्तार से हो सकता है. इसमें माइक्रो टारगेटिंग के जरिए नई टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर बड़े पैमाने पर ऑनलाइन डेटा इकट्ठा किया जा सकता है. इसके जरिए आसानी से डिजिटल मीडिया में कोई भी बदलाव लाया जा सकता है.
कौन है इसके निशाने पर?
डीपफेक के गलत तरीके से इस्तेमाल का पहला मामला पोर्नोग्राफी में सामने आया था. एक ऑनलाइन आईडी प्रमाणित करने वाली सेनसिटी डॉट एआई (Sensity.ai) वेबसाइट के मुताबिक 96 फीसदी डीपफेक अश्लील वीडियो हैं. इनको अकेले अश्लील वेबसाइटों पर 135 मिलियन से अधिक बार देखा गया है.
डीपफेक पोर्नोग्राफी खास तौर से औरतों और लड़कियों को निशाना बनाती है. अश्लील डीपफेक धमकी दे सकते हैं. भयभीत कर सकते हैं खौफ पैदा कर सकते हैं और मनोवैज्ञानिक नुकसान पहुंचा सकते हैं. ये महिलाओं को एक यौन वस्तु की तरह पेश करते हैं. इससे उन्हें भावनात्मक तौर पर नुकसान पहुंच सकता है.
कुछ मामलों में ये वित्तीय नुकसान और नौकरी छूटने जैसे नतीजों की वजह भी बनता है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस वाले कुछ एप इंटरनेट की दुनिया में झूठ को सच साबित करने वााले रिवेंज पोर्न वीडियो बनाने में सबसे अधिक इस्तेमाल में लाए जा रहे हैं.
डीपफेक किसी शख्स को समाज विरोधी व्यवहार और हरकतें करने और ऐसी घटिया बातें कहते हुए दिखाया सकता है जो उसने कभी की ही नहीं हैं. यहां तक कि अगर डीपफेक का शिकार शख्स इसे खारिज भी करें तो वो शुरुआत में खुद को पहुंचे नुकसान की भरपाई नहीं कर पाता, तब-तक बहुत देर हो सकती है.