टुडे गुजराती न्यूज (ऑनलाइन डेस्क)
देश के सबसे बड़े कोचिंग हब कोटा में एक महीने के भीतर चार छात्रों ने आत्महत्या कर ली। ऐसे में विशेषज्ञों ने अभिभावकों से अनुरोध किया है कि संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई) और राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (नीट) की तैयारी के लिए बच्चों को कोटा भेजने से पहले उनकी काउंसलिंग कराएं।
विशेषज्ञों और मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि कोटा भेजने से पहले छात्रों की पेशेवर योग्यता को जांचना चाहिए। मानसिक रूप से उन्हें मजबूत करना चाहिए और उनके भीतर रोजमर्रा के कामों के अनुसार ढलने की क्षमता विकसित करनी चाहिए।
बच्चों की करानी चाहिए काउंसलिंग
न्यू मेडिकल कॉलेज अस्पताल में मनोरोग विभाग के प्रमुख डॉ. चंद्रशेखर सुशील ने कहा कि बच्चों को डॉक्टर और इंजीनियर बनाने के लिए दबाव डालने के बजाय माता-पिता उनकी काउंसलिंग कराएं और फिर यह तय करें कि उनके लिए क्या बेहतर है।
ज्यादातर अभिभावक बिना किसी तैयारी के बच्चों को कोचिंग के लिए भेज देते हैं और उनका ध्यान सिर्फ वित्तीय और साजो सामान की व्यवस्था करने पर होता है। कोटा में कोचिंग कर रहे चार छात्रों की आत्महत्याओं ने छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर नई बहस छेड़ दी है, जो परिवारिक अपेक्षाओं और पाठ्यक्रम का बोझ नहीं झेल पाते हैं।
एलन कॅरियर इंस्टीट्यूट के प्रिंसिपल काउंसलर और छात्र व्यवहार विशेषज्ञ हरीश शर्मा ने बताया कि जब छात्र कक्षा 5 या फिर 6 में होता है तो अभिभावक यह तय कर लेते हैं कि दो-चार साल में बच्चे को कोटा भेज देंगे। ऐसे में अभिभावक बेटे को कोटा भेजने की योजना पर काम करने लगते हैं और पैसे बचाना शुरू कर देते हैं।हरीश शर्मा ने बताया कि अभिभावक पेशेवर तौर पर यह नहीं सोचते हैं कि क्या उनका बेटा वास्तव में ऐसा करना चाहता है, या फिर क्या वो ऐसा करने में सक्षम है या नहीं। उन्होंने कहा कि काउंसलरों की मदद लेने में अभिभावकों को शर्म नहीं होनी चाहिए। करीब एक दशक पहले काउंसलर की मदद आसानी से नहीं मिल पाती थी लेकिन आज के समय में ऐसा नहीं है।
ज्यादा नंबरों की चाहत रखते हैं अभिभावक
उन्होंने कहा कि ज्यादातर अभिभावक अपने बच्चों की मानसिक क्षमता को समझे बिना ज्यादा नंबर लाने पर ध्यान देते हैं। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि कक्षा 10 या 12 में 90 फीसदी से ज्यादा नंबर यह तय करने का मानदंड नहीं हो सकता है कि कोई बच्चा इंजीनियरिंग या फिर मेडिकल के लिए बना है। हम अक्सर यहां पर ऐसे छात्र देखते हैं जो या तो माता-पिता के दबाव में आते हैं या फिर उन्हें अपनी पसंद के बारे में पता नहीं होता है। ऐसे में काउंसलिंग मददगार साबित होती है।