टुडे गुजराती न्यूज (ऑनलाइन डेस्क)
जनरल या ओबीसी कैटगरी को केंद्र सरकार की नौकरियों में आरक्षण का लाभ लेने के लिए सरकार ने 8 लाख रुपये सलाना आय की सीमा तय रखी है जिसे क्रीमी लेयर भी कहा जाता है. ओबीसी या जनरल कैटगरी में जिस परिवार की सलाना आय 8 लाख रुपये साल से कम होती है उन्हें ही आरक्षण का लाभ मिलता है. ऐसे लोगों को सरकार गरीब मानती है. अब सवाल उठ रहा है कि 2.50 लाख रुपये से कुछ ज्यादा कमाने वाले लोग इनकम टैक्स का भुगतान क्यों कर रहे हैं? इस बात की गूंज संसद में सुनाई दी है.
इस भेदभाव को लेकर संसद में सरकार से सवाल पूछा गया है. राज्यसभा सांसद पी भट्टाचार्य ने वित्त मंत्री से इसे लेकर सवाल किया कि जब 8 लाख रुपये सलाना कमाने वाले को सरकार गरीब मानती है तो भला 2.50 लाख रुपये कमाने वालों को टैक्स देने के लिए कैसे कहा जा सकता है?
8 लाख रुपये है परिवार की सलाना आय!
इस सवाल का जवाब देते हुए वित्त राज्यमंत्री पकंज चौधरी ने कहा कि जनरल कैटगरी के आर्थिक रूप से कमजोर (EWS) लोगों को आरक्षण का लाभ लेने के लिए परिवार की सलाना आय 8 लाख रुपये सलाना सरकार ने तय किया है. ये 8 लाख रुपये की लिमिट सभी स्त्रोतों से परिवार के सभी सदस्यों की सलाना आय को मिलाकर बनता है. जबकि इनकम टैक्स एक्ट के तहत 2.50 लाख रुपये की बेसिक इनकम टैक्स छूट की सीमा एक सिंगल व्यक्ति के आय पर लागू होती है. उन्होंने कहा कि आर्थिक रूप से कमजोर (EWS) लोगों के परिवार के कुल आय में कृषि से होने वाला इनकम भी शामिल है. जबकि इनकम टैक्स कानून में कृषि आय पर टैक्स छूट हासिल है.
5 लाख रुपये तक के आय पर टैक्स नहीं
वित्त राज्य मंत्री ने कहा कि फाइनैंस एक्ट 2019 में इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 87 ए के तहत 5 लाख रुपये तक के इनकम वालों को टैक्स में 100 फीसदी की छूट दी गई है. यानि 5 लाख रुपये तक के सलाना इनकम वालों को कोई टैक्स नहीं चुकाना पड़ता है. वित्त राज्यमंत्री ने कहा कि 5 लाख रुपये से जिनकी आय ज्यादा है वे इनकम टैक्स कानून के तहत मिले इंसेंटिव और डिडक्शन का लाभ ले सकते हैं जिससे वे अपने ऊपर टैक्स के बोझ को कम कर सकते हैं.
8 लाख रुपये कमाने वालों को कई छूट हासिल
पंकज चौधरी ने कहा कि 8 लाख रुपये तक सलाना कमाने वाला व्यक्ति इनकम टैक्स कानून के तहत कई प्रकार के छूट लेकर अपने ऊपर टैक्स के भार को कम कर सकता है. उन्होंने कहा कि इससे स्पष्ट है कि आय पर इनकम टैक्स छूट की सीमा और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को निर्धारित करने के लिए तय किए आय की लिमिट की तुलना करना कतई उचित नहीं है क्योंकि दोनों तय करने का तरीका बिलकुल अलग है.