साल 2022 के साहित्य का नोबेल पुरस्कार (Nobel Prize) फ्रांसीसी लेखिका एनी अर्नाक्स ( Annie Ernaux) के नाम रहा. जिंदगी की परेशानियों से हार न मानकर इस फ्रेंच लेखिका ने साबित कर दिया कि काबिलियत संघर्षों में ही निखरती है. उनकी इसी जद्दोजहद को उन्होंने लफ्जों के जरिए अपने लेखन में उतारा.
जिंदगी का यही सच जब उनकी किताबों के जरिए साहित्य में उतरा तो इसे दुनिया भर में पहचान और सराहना मिली. इतनी प्रशंसा हुई कि इस धरती के सबसे सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार के लिए उनका नाम फाइनल हुआ और वो नोबेल पाने वाली सम्मानित हस्तियों में शामिल हो गईं. एक गांव से निकल दुनिया के फलक पर छा जाने की कहानी का नाम अब एनी अर्नाक्स कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति न होगी.
अभावों में पली
फ्रेंच लेखिका एनी अर्नाक्स का जन्म 1940 में हुआ था और वे नॉमैंडी (Normandy) के छोटे से शहर यवेटोट (Yvetot) में पली-बढ़ी थीं, जहां उनके माता-पिता की एक संयुक्त किराने की दुकान और कैफे था. उनके पारिवारिक हालात खराब थे, लेकिन वो महत्वाकांक्षी थी. अपने माता-पिता के साथ उन्होंने सर्वहारा अस्तित्व से बुर्जुआ तक का जीवन जीया. इस जीवन की यादें उन्हें कभी नहीं भूलीं.लेखक बनने का उनका रास्ता लंबा और कठिन था. अपने लेखन में अर्नाक्स ने समाज की इन्हीं विसंगितयों को उतार डाला. अर्नाक्स ने शुरुआती दौर में अपने लेखन का आधार अपनी ग्रामीण पृष्ठभूमि को बनाया. धीरे-धीरे उनका लेखन उपन्यास (Fiction) के इस दायरे से निकल कर समाज में फैली वास्तविक असमानतों की तरफ बढ़ता गया.
पियरे बॉर्डियू से प्रभावित
फ्रेंच लेखिका एनी अपनी क्लासिक, विशिष्ट शैली के बावजूद, वह एलान करती है कि वह उपन्यास लेखक की जगह खुद ही संस्कृतियों के बीच समानता और अंतर खोजने वाली नृजातिवज्ञानी (Ethnologist) हैं. वह अक्सर फ्रेंच उपन्यासकार मार्सेल प्रुस्त (Marcel Proust’s) से खुद को प्रभावित पाती है तो समान तौर पर वो पियरे बॉर्डियू (Pierre Bourdieu) समाजशास्त्री से गहराई से प्रभावित हुई है.
एनी के कल्पना के परदे को चीरने की महत्वाकांक्षा ने उन्हें अतीत के एक व्यवस्थित पुनर्निर्माण के लिए प्रेरित किया है. उन्होंने एक डायरी के रूप में कच्ची तरह के गद्य को लिखने की कोशिश भी की है. इसमें उन्होंने विशुद्ध तौर पर बाहरी घटनाओं को दर्ज किया है. हम उनके इस तरह के लेखन को साल 1933 की जर्नल डू डेहोर्स (Journal Du Dehors), साल 1993 की एक्सटीरियर्स (Exteriors) और साल 1993-99 ला वी एक्सटीरियर (ला वी एक्सटीरियर ) जैसी किताबों में देख सकते हैं.
दो बार रुका साहित्य का नोबेल
साल 1901 से नोबेल पुरस्कार की शुरुआत की गई थी. इसके 119 साल के इतिहास में दो बार ऐसा हुआ जब साहित्य के क्षेत्र में दिया जाना वाला ये पुरस्कार किसी को नहीं दिया गया. साल 1943 में इसे दूसरे विश्व युद्ध के दौरान पहली बार ऐसा हुआ कि साहित्य के नोबेल से किसी शख्स को नहीं नवाजा गया. इसके बाद ऐसा मौका साल 2018 में आया था. तब ये स्वीडिश अकादमी की ज्यूरी सदस्य कटरीना के पति और फ्रेंच फोटोग्राफर जेन क्लोड अरनॉल्ट पर यौन शोषण के आरोप की वजह से नहीं दिया गया था.