Today Gujarati News (Desk)
अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (IMF) ने पाकिस्तान के सर्कुलर कर्ज मैनेजमेंट प्लान (CDMP) को मानने से इनकार कर दिया है। इसके बाद पाकिस्तान की मुश्किलें और बढ़ गई हैं। आईएमएफ चाहता था कि प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ बिजली की कीमतों में 11 से 12.50 फीसदी प्रति यूनिट तक का इजाफा करें। यह कर्ज खारिज होना पाकिस्तान के लिए बुरी खबर है। लेकिन वहीं यह बात भी सच है कि मुश्किलों के पहाड़ तले दबे पाकिस्तान के लिए अकेला आईएमएफ लोन कुछ नहीं कर सकता है। विशेषज्ञों के मुताबिक देश को बहुत बड़ी मदद की दरकार है।
सही आर्थिक नीतियां जरूरी
आईएमएफ की तरफ से पाकिस्तान को एक्सटेंडेड फंड फैसिलिटी (EEF) के तहत बेलआउट पैकेज दिया जाना है। लेकिन यह बेलआउट पैकेज देश की अर्थव्यवस्था के लिए बहुत कम है। थिंक टैंक पाकिस्तान इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स (PIDE) ने सितंबर 2022 में अपने रिव्यू में कहा था कि आईएमएफ की तरफ से जो कर्ज की रूपरेखा तैयार की गई है, उसने इससे जुड़े संशोधन को कचरे में बदलकर रख दिया है। थिंक टैंक का कहना है कि जब तक सही आर्थिक नीतियां नहीं होंगी तब तक देश इसी तरह से मुश्किलों में चलता रहेगा।
भारत के साथ रिश्ते हों बहाल
पाकिस्तान ने 20 बार आईएमएफ से कर्ज लिया है। थिंक टैंक की मानें तो अब यह एक धारणा बन चुकी है। देश में सुधार की जगह समय-समय पर द्विपक्षीय और बहुपक्षीय कर्जदाताओं पर निर्भर रहने की आदत बन गई है। पाकिस्तान के नीतिकारों की तरफ से कई बार सरकार से अपील की गई है कि भारत के साथ व्यापारिक रिश्तों को बहाल किया जाए मगर सरकार ने हर बार इसे अनसुना कर दिया है।
अगस्त 2022 में प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने फिर दोहराया कि जब तक भारत कश्मीर का मसला नहीं सुलझाता, उसके साथ कोई बिजनेस नहीं होगा। थिंक टैंक के मुताबिक आईएमएफ और इसकी शर्तों की वजह से शहबाज और उनकी टीम को काफी शर्मिंदगी झेलनी पड़ेगी।
IMF कर्ज सिर्फ ऑक्सीजन सिलेंडर
पाकिस्तान के पास भारत के साथ व्यापार की वजह से काफी संभावनाएं हैं। आईएमएफ के मुताबित स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान को सख्त मौद्रिक नीतियों को आगे बढ़ाना होगा। पीआईडीई की रिपोर्ट में लिखा है कि महंगाई बढ़ती जाएगा। साथ ही जनता पर करों का बोझ भी पड़ने वाला है। थिंक टैंक की मानें तो आईएमएफ का लोन उस ऑक्सीजन सिलेंडर की तरह है जो जब तक रहेगा तब तक पाकिस्तान की सांस चलेगी, लेकिन इसके हटते ही सांसें भी बंद हो जाएंगी। थिंक टैंक का मानना है कि छह बिलियन डॉलर की रकम इतनी बड़ी अर्थव्यवस्था के लिए कम है खासकर तब जब देश भयानक आर्थिक संकट में फंसा है।