आतंक के वित्तपोषण पर नजर रखने वाली पेरिस स्थित संस्था फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) ने बुधवार 19 अक्टूबर को पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट से बाहर कर दिया है, जिसे लेकर भारत ने कड़ी नाराजगी जताई है। भारत ने अपनी नाराजगी जताते हुए कहा कि यह आतंकवाद से लड़ाई में काला धब्बा है।
FATF सूची से बाहर होने के पाकिस्तान के कदम पर कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने भी टिप्पणी की है। उन्होंने एक निजी टीवी चैनस से बातचीत में कहा कि हमारा पड़ोसी भारत में शांति से खुश नहीं है। दुनिया देख रही है कि कौन सा देश आतंकवाद का समर्थन कर रहा है। हमारा विदेश मंत्रालय (MEA) सतर्क है और उचित कार्रवाई करता है।
बता दें कि पाकिस्तान को एफएटीएफ ने जून 2018 में ग्रे लिस्ट में शामिल किया गया था। एफएटीएफ ने उस वक्त आतंकवाद को होने वाली गलत फंडिंग, अनियमितता, जांच में कमी, गैर सरकारी संस्थानों में मनी लाड्रिंग को विश्व के वित्तीय सिस्टम के लिए बड़ा खतरा माना था। FATF ने पहले पाकिस्तान को 27 बिंदुओं पर काम करने को कहा था। इसके बाद इन बिंदुओं को बढ़ा कर 34 और फिर 40 तक कर दिया गया था। पाकिस्तान को अब पेरिस में होने वाली चर्चा के परिणामों का बेसर्बी से इंतजार हो रहा है।
बता दें कि दो साल के लिए FATF की प्रेसिडेंसी सिंगापुर के पास है। 206 मेंबर्स की लिस्ट में IMF, UN, वर्ल्ड बैंक, इंटरपोल और फाइनेंशियल इंटेलिजेंस यूनिट भी शामिल हैं। वहीं, ये मीटिंग दो दिन तक चलेगी।
इस दौरान दौरान यह भी जांच की जाएगी कि किन देशों की वजह से इंटरनेशनल फाइनेंशियल सिस्टम को खतरा है। इसके बारे में मीडिया को भी जानकारी दी जाएगी। सबसे ज्यादा फोकस ट्रांसपेरेंसी पर होगा।
पाकिस्तान को 2018 में “रणनीतिक काउंटर आतंकवादी वित्तपोषण-संबंधी कमियों” के कारण सूचीबद्ध किया गया था। यदि पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट से हटा दिया जाता है, तो पाकिस्तान को एक प्रतिष्ठा मिलेगी और आतंकवादी वित्तपोषण पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की ओर से भी उसे क्लीन चिट भी मिल सकती है।
अर्थशास्त्री और सिटीग्रुप के पूर्व बैंकर यूसुफ नज़र ने कहा कि हालांकि इसका देश की संघर्षरत अर्थव्यवस्था पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, लेकिन इससे पाकिस्तान से जुड़े वैश्विक लेनदेन की जांच कम करने में मदद मिलेगी।